दैवीय शक्ति के प्रतीक जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के आशीर्वाद से समरसता सेवा संगठन का शुभारंभ

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लेख

मानवता है मेरा मन्दिर, मैं हूँ उसका एक पुजारी हैं विकलांग महेश्वर मेरे, मैं हूँ उनका एक पुजारी -
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी
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महान् रामानंद संप्रदाय के संस्थापक स्वामी रामानन्दाचार्य ने लगभग सात सौ वर्ष पूर्व हिन्दू समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करते हुए था कि" जाति पाँति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई "। स्वामी रामानंद ने सगुण और निर्गुण को एक करते हुए श्री राम को केंद्र में रखते हुए भक्ति आंदोलन को पल्लवित और पुष्पित कर रामानंद संप्रदाय की स्थापना की थी । उन्होंने जाति अथवा वर्ण के रुप में शिष्यों में कभी भेद नहीं किया। इसलिए संत कबीर और संत रविदास जैंसे उनके महान् शिष्य हुए। रामानन्दाचार्य की परंपरा प्रवहमान हुई जिसके परिप्रेक्ष्य में रामानन्दाचार्यों की सुदीर्घ परंपरा चली आ रही है।
वर्तमान में इसी रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक देदीप्यमान रामानन्दाचार्य के रुप में जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी प्रतिष्ठित हैं।

रामभद्राचार्य जी का नाम बहुत ही आदर के साथ हिन्दू संत समाज में लिया जाता है। धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी वही हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धरण के साथ गवाही दी थी।

उनके बारे में यह बातें सोशल मीडिया पर इन दिनों वायरल हो रही है कि जब श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वे वादी के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है।

कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई और उसमें जगद्गुरु जी द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए। जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है, विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है और जगद्गुरु जी के वक्तव्य ने फैसले का रुख मोड़ दिया। मुस्लिम जज अब्दुल नजीर ने भी स्वीकार किया- आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा...एक व्यक्ति जो भौतिक रूप से आंखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिए जा रहे थे? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है? सिर्फ दो माह की उम्र में जगद्गुरु रामभद्राचार्य की आंखों की रोशनी चली गई,तदुपरांत सबसे आश्चर्यजनक तथ्य है यह है कि उन्होंने ब्रेल लिपि का सहारा नहीं लिया, जबकि ब्रेल लिपि के बिना दृष्टिहीन न पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं, बावजूद इसके उन्हें 22 भाषाएं आती हैं, 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है?

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को हुआ उनका पूर्वाश्रम का नाम गिरिधर मिश्र है ।चित्रकूट उत्तर प्रदेश में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक, धर्मगुरु हैं। वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर 1988 ई से प्रतिष्ठित हैं।वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं।

जगद्गुरु परमपूज्य श्री रामभद्राचार्य जी चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और डिग्री प्रदान करता है।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य दो मास की आयु में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं। इसके बाद भी जगद्गुरु परमपूज्य रामभद्राचार्य बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषाएँ बोलते हैं। वे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है और वे रामचरितमानस की एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है।स्वामी रामभद्राचार्य रामायण और भागवत के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती है।

श्रुति परंपरा के संवाहक एकश्रुत प्रतिभा से युक्त जगतगुरू रामभद्राचार्य जी ने अपने पड़ोसी पण्डित मुरलीधर मिश्र की सहायता से पाँच वर्ष की आयु में मात्र पन्द्रह दिनों में श्लोक संख्या सहित सात सौ श्लोकों वाली सम्पूर्ण भगवद्गीता कण्ठस्थ कर ली। 1955 ई में जन्माष्टमी के दिन उन्होंने सम्पूर्ण गीता का पाठ किया। सात वर्ष की आयु में जगतगुरू रामभद्राचार्य जी ने अपने पितामह की सहायता से छन्द संख्या सहित सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस साठ दिनों में कण्ठस्थ कर ली। 1957 ई में रामनवमी के दिन व्रत के दौरान उन्होंने मानस का पूर्ण पाठ किया। उन्हे सभी वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, सहित लगभग 15 लाख से भी अधिक पृष्ठ कंठस्थ है और बागेश्वर धाम सरकार के महंत श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी सहित अनेक विद्वान संत, महापंडित, कथावाचक उनके शिष्य है।

पद्म विभूषण तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्यजी एक ऐसे संन्यासी हैं जो अपनी दिव्यांगता को पराजित कर जगद्गुरु बने।अत्यंत गर्व और गौरव का विषय है कि समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष संदीप जैन के भगीरथ प्रयास से 13 अप्रैल 2023 को ऐंसी देवत्व प्राप्त ईश्वरीय शक्ति के प्रतीक जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी शुभ आगमन और आशीर्वाद से आध्यात्मिक नगरी जबलपुर में समरसता सेवा संगठन का शुभारंभ हुआ।


डॉ.आनंद सिंह राणा, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत|

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